आयुर्वेदिक औषधियों के प्रकार और उनकी परिभाषा | पूरी जानकारी
इस लेख में हम आयुर्वेदिक औषधियों के विभिन्न प्रकारों और उनकी परिभाषाओं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। आयुर्वेद में काढ़ा, चूर्ण, वटी, अवलेह, और घृत-तेल जैसी औषधियों का महत्व और उपयोग समझाएंगे। जानें कैसे ये औषधियां स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती हैं और कैसे इन्हें सही तरीके से तैयार और उपयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक उपचारों की प्रभावशीलता और उपयोग की विधियों के साथ अपनी सेहत को बेहतर बनाने के लिए इस लेख को पढ़ें।
शास्त्रों में चार प्रकार के रोगों का वर्णन : शास्त्रों में चार तरह के रोगों का उल्लेख मिलता है। इन रोगों से संसार के सभी प्राणी किसी न किसी रूप में प्रभावित होते हैं। इनकी अलग-अलग परिभाषा दी गई है, जो शास्त्रों में रोगों का वर्णन
शास्त्रों में चार प्रकार के रोगों का उल्लेख किया गया है। ये रोग सभी जीवों में कम या ज्यादा मात्रा में देखने को मिलते हैं। इनकी परिभाषा निम्नलिखित है:
- स्वाभाविक रोग
भूख, प्यास, नींद, बुढ़ापा, जन्म और मृत्यु जैसे रोग स्वाभाविक माने जाते हैं। ये सभी जीवों के जीवन का हिस्सा होते हैं और इन्हें कोई नहीं टाल सकता। - मानसिक रोग
काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, अहंकार, पुरानी बातों की चिंता, दिखावा, द्वेष, शोक, दर्द, ईर्ष्या, भ्रम, और गलतफहमियां मानसिक रोग माने जाते हैं। ये रोग मन और भावनाओं से जुड़े होते हैं। - आगंतुक रोग
यह वे रोग हैं जो बाहरी कारणों से उत्पन्न होते हैं, जैसे चोट लगना, संक्रमण, किसी दुर्घटना से चोट, या जन्मजात विकार।
आयुर्वेदिक औषधियों के प्रकार और उनकी परिभाषा
आयुर्वेदिक नियमों के अनुसार औषधियों को पाँच प्रकार में बांटा गया है:
- काढ़ा
- चूर्ण
- वटी (गोलियां)
- अवलेह (गाढ़ा लेप)
- घृत और तेल
इन सभी की विधियां संक्षेप में इस प्रकार हैं:
काढ़े के पाँच प्रकार और उनकी परिभाषा
काढ़ा (कपाय) पाँच प्रकार का होता है: स्वरस, कल्क, काढ़ा, हिम, और फांट। इनकी विधि और परिभाषा नीचे दी गई है:
(i) स्वरस
स्वरस तीन तरीकों से तैयार किया जाता है:
- ताजा और साफ जड़ी-बूटियां लें, जिनमें किसी भी प्रकार के कीड़े या गंदगी न हों।
- जड़ी-बूटियों को अच्छी तरह कूटें और कपड़े से छानें।
- 12 ग्राम, 9 ग्राम, और 6 ग्राम की मात्रा में इसे उत्तम, मध्यम और सामान्य गुण के अनुसार तैयार किया जाता है।
(ii) रस
रस तैयार करने की तीन विधियां हैं:
- 16 तोला (लगभग 192 ग्राम) सूखी औषधि लें और इसे पीसकर चूर्ण बनाएं।
- इस चूर्ण को 32 तोला पानी में डालकर 8 घंटे भिगो दें। फिर इसे कपड़े से छानकर रस निकाल लें।
- औषधि को 8 गुना पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में डालें और धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी का चौथाई हिस्सा बच जाए, तो इसे छानकर उपयोग करें।
(iii) काढ़े में मिलाने वाले पदार्थ
- वात रोगों में शक्कर चतुर्थांश (¼) मात्रा में डालें।
- पित्त रोगों में शक्कर अष्टमांश (⅛) मात्रा में डालें।
- कफ रोगों में शक्कर सोलहवां (1/16) हिस्सा डालें।
- मधु (शहद), त्रिकुट (सोंठ, मिर्च, पीपली), जीरा, हींग, और अन्य औषधियां 6 माशा (लगभग 6 ग्राम) मात्रा में मिलाएं।
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(iv) हिम
- 4 तोला औषधि लें और इसे 24 तोला पानी में रातभर भिगो दें।
- सुबह इसे छानकर पिएं। यह ठंडे काढ़े के रूप में उपयोग होता है।
(v) कल्क
- ताजी जड़ी-बूटियों को चटनी की तरह पीसें।
- इसमें घी, तेल, मधु, दूध, या शक्कर मिलाई जा सकती है। मात्रा का ध्यान रखें:
- घी/तेल: औषधि की मात्रा से दुगुना।
- शक्कर या गुड़: औषधि के बराबर।
- दूध या पानी: औषधि की मात्रा से चार गुना।
(vi) फांट
- 4 तोला वनस्पति का महीन चूर्ण बनाएं।
- मिट्टी की हांडी में 16 तोला पानी डालें और उबालें।
- जब पानी उबलने लगे, तो उसमें औषधि डालें और कुछ समय बाद छान लें।
(vii) काढ़ा
- 4 तोला औषधि और 64 तोला पानी लें।
- इसे मिट्टी के बर्तन में धीमी आंच पर पकाएं।
- जब पानी का चौथाई हिस्सा बच जाए, तो इसे छानकर पिएं।
चूर्ण की परिभाषा
- सूखी जड़ी-बूटियों को कूटकर और छानकर चूर्ण बनाया जाता है।
- इसे 1 तोला (लगभग 12 ग्राम) मात्रा में उपयोग किया जाता है।
वटी (गोलियों) की परिभाषा
औषधियों को शहद और घी के साथ मिलाकर गोलियां तैयार की जाती हैं।
अवलेह (लेप) की परिभाषा
औषधियों को गाढ़ा लेप बनाकर उपयोग किया जाता है।
घृत और तेल की परिभाषा
औषधियों को घी या तेल में मिलाकर तैयार किया जाता है। इनका उपयोग मालिश, खाने या अन्य रूपों में किया जाता है।
निष्कर्ष
आयुर्वेदिक औषधियों की ये विधियां शरीर और मन के रोगों को ठीक करने में अत्यंत उपयोगी हैं। इन्हें सही अनुपात और विधि के अनुसार बनाना और उपयोग करना चाहिए।