दांतों में कैविटी क्यों होती है? जानिए कारण, लक्षण और असरदार घरेलू इलाज
तो ज़रा सोचिए, आप मुस्कुरा रहे हैं, लेकिन क्या पता उस मुस्कान के पीछे कोई अदृश्य दुश्मन छुपा हो — कैविटी। हाँ, वही कैविटी जो दाँतों में छेद बनाकर शुरू होती है, लेकिन अगर उसे रोका न जाए, तो वो बड़ा संकट बन जाती है। तो चलिए समझते हैं कि ये कैविटी होती क्या है, कैसे बनती है, और आप इससे कैसे बच सकते हैं।
कैविटी यानी दांतों में एक छेद जो दांत की ऊपरी परत — जिसे इनैमल कहते हैं — के घिसने से बनता है। ये तब होता है जब हमारे मुंह में मौजूद एसिड उस सख्त परत को धीरे-धीरे नष्ट करता है। और ये किसी को भी हो सकता है — बच्चा, बड़ा, जवान या बूढ़ा। लेकिन अच्छी बात ये है कि अगर आप सही तरीके से दांतों की सफाई करते हैं और हर छह महीने पर डेंटिस्ट से चेकअप करवाते हैं, तो इस परेशानी से बचा जा सकता है।
अब बात करें दाँतों की सड़न के प्रकार की, तो इनकी भी कई किस्में होती हैं। पहली होती है स्मूद सरफेस डिके — ये धीरे-धीरे दांतों के बीच में होता है, खासकर बीस की उम्र के लोगों में। फिर होता है पिट्स एंड फिशर डिके — ये आपके पीछे वाले दांतों की चबाने वाली सतह पर बनता है और बहुत तेज़ी से फैलता है, खासकर किशोरावस्था में। और तीसरा होता है रूट डिके — ये आमतौर पर तब होता है जब आपके मसूड़े पीछे हट जाते हैं और दांत की जड़ें सड़न के संपर्क में आ जाती हैं।

अब आप सोच रहे होंगे, ये कितने लोगों को होता है? तो सुनिए — अमेरिका में Eighty percent से ज़्यादा लोग तीस की उम्र तक कम से कम एक बार कैविटी से जूझ चुके होते हैं। मतलब ये परेशानी बहुत कॉमन है और सभी उम्र के लोगों को हो सकती है। खासकर बच्चों में कैविटी ज़्यादा होती है क्योंकि वे ठीक से ब्रश नहीं करते या ज़्यादा मीठा खाते हैं। लेकिन वयस्क भी इससे अछूते नहीं हैं। कभी-कभी पुराने फिलिंग के किनारों से भी सड़न शुरू हो जाती है या मसूड़ों के पीछे हटने से रूट डिके होने लगता है।
कैसे पता चले कि कैविटी हो रही है? तो इसके कुछ लक्षण हैं — जैसे मुंह से बदबू आना, स्वाद का खराब लगना, मसूड़ों से खून आना, चेहरे की सूजन, दांतों में दर्द या ठंडा-गर्म खाने पर संवेदनशीलता। शुरू में जब सड़न सिर्फ इनैमल तक होती है तो कोई दर्द नहीं होता, लेकिन जैसे ही ये डेंटिन और पल्प तक पहुँचती है, दर्द शुरू हो जाता है।
अब जान लीजिए दांतों के डिके के पाँच स्टेजेस — पहला है डिमिनरलाइजेशन, जिसमें सफेद चॉक जैसे धब्बे दिखते हैं। फिर आता है इनैमल डिके, फिर डेंटिन डिके, फिर पल्प डैमेज और आखिर में सबसे खतरनाक — पेरियापिकल एब्सेस, यानी दांत के नीचे मवाद की थैली बन जाती है जो दर्द को जबड़े, चेहरे और गर्दन तक फैला सकती है। और ध्यान दीजिए, इस स्टेज पर संक्रमण खून में जाकर जानलेवा भी हो सकता है।
अब ये होता क्यों है? जब आप मीठा या स्टार्च वाला खाना खाते हैं — जैसे कैंडी, ब्रेड, जूस, सोडा — तो मुंह के बैक्टीरिया उन्हें एसिड में बदल देते हैं, और यही एसिड आपके दांतों के इनैमल को नुकसान पहुंचाता है। ऊपर से अगर आप ब्रश और फ्लॉस ठीक से नहीं करते, तो वही प्लाक, वही बैक्टीरिया और वही एसिड एकसाथ मिलकर आपके दांतों में छेद कर देते हैं।
कुछ चीज़ें इस खतरे को और बढ़ा देती हैं — जैसे ड्राय माउथ, बार-बार स्नैकिंग, मीठा ज़्यादा खाना, मसूड़ों का पीछे हटना, या फिर रेडिएशन थेरेपी के साइड इफेक्ट्स। और हाँ, एक बात और — भले ही कैविटी संक्रामक न हो, लेकिन उसे पैदा करने वाले बैक्टीरिया एक इंसान से दूसरे में जा सकते हैं, जैसे कि चुंबन के ज़रिए।
अब सवाल ये है कि इसका पता कैसे चले? तो इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि साल में दो बार दांतों की जांच कराएं। डेंटिस्ट मिरर, एक्सप्लोरर और एक्स-रे जैसे टूल्स से आपके दांतों की जांच करता है। एक्स-रे कैविटी को शुरुआती स्टेज में पकड़ लेता है।
और अगर कैविटी हो चुकी हो तो इलाज क्या है? तो शुरुआती स्टेज में फ्लोराइड ट्रीटमेंट से इनैमल को रीमिनरलाइज़ किया जा सकता है। अगर छेद बन चुका हो, तो फिलिंग ज़रूरी होती है जिसमें दांत के सड़े हिस्से को निकालकर कंपोजिट रेजिन या सिल्वर अमलगम से भरा जाता है। अगर सड़न बहुत बढ़ चुकी हो, तो रूट कैनाल करानी पड़ती है। और अगर वो भी मुमकिन न हो, तो दांत निकालना पड़ता है, फिर उसकी जगह ब्रिज या इम्प्लांट लगाना होता है।
तो क्या करें कि ये समस्या हो ही न? इसका सीधा उपाय है — ब्रश कीजिए दिन में दो बार फ्लोराइड टूथपेस्ट से, खाने के बाद भी कर पाएं तो और अच्छा। मीठा और स्टार्च वाला खाना कम खाइए। रोज फ्लॉस कीजिए और साल में दो बार डेंटिस्ट से मिलिए। और हाँ, ज़रूरत हो तो डेंटल सीलेंट भी लगवा सकते हैं जो दांतों को सुरक्षित रखता है।
क्या आपके दांतों में सड़न शुरू हो गई है? क्या आप बार-बार होने वाले दर्द और परेशानियों से परेशान हैं? तो अब वक्त है बिना दवाई के, घर बैठे ही असरदार समाधान अपनाने का। चलिए जानते हैं दांतों की सड़न के लिए घरेलू उपचार जो ना सिर्फ सस्ते हैं बल्कि बेहद कारगर भी हैं।
तेल खींचना: (ऑयल पुलिंग)
जिसे आयुर्वेद में ऑयल पुलिंग कहा जाता है, बहुत ही पुराना और असरदार तरीका है। नारियल का तेल, तिल का तेल या सूरजमुखी का तेल, इनमें से कोई भी एक लेकर दो से पांच मिनट तक अपने मुंह में घुमाइए। नारियल तेल में जो एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, वो आपके मुंह से बैक्टीरिया जैसे स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस को कम करते हैं, जो कैविटी का बड़ा कारण होता है। इसे रोजाना ब्रश करने से पहले एक बड़ा चम्मच लेकर इस्तेमाल करें, और आप देखेंगे कि प्लाक कम हो रहा है और दांत मज़बूत हो रहे हैं।
लौंग का तेल:
जो अपने दर्द को कम करने और बैक्टीरिया को खत्म करने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। इसमें मौजूद यूजेनॉल कंपाउंड दांत के दर्द को सुन्न करता है और कैविटी का कारण बनने वाले बैक्टीरिया से लड़ता है। बस एक कॉटन बॉल पर कुछ बूंदें लगाइए और उसे प्रभावित दांत पर रख दीजिए, या फिर इसे माउथवॉश में कैरियर ऑयल के साथ मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं।
नीम:
जो हर भारतीय घर की शान है, अपने जबरदस्त एंटी-बैक्टीरियल और सूजन कम करने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। नीम के टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें या नीम के पत्तों को पानी में उबालकर माउथवॉश बनाएं और ब्रश के बाद उससे कुल्ला करें। इससे मसूड़े मज़बूत, कैविटी की रोकथाम और खराब सांस में राहत मिलती है।
एलोवेरा:
जो सिर्फ स्किन के लिए नहीं, बल्कि मुंह के बैक्टीरिया को कम करने और मसूड़ों की सूजन को शांत करने के लिए भी जबरदस्त है। एलोवेरा जेल को सीधे दांतों और मसूड़ों पर लगाएं, कुछ मिनट रहने दें और फिर अच्छे से कुल्ला करें।
अंडे के छिलके का पाउडर:
इसमें भरा है कैल्शियम, जो आपके दांतों के इनेमल को फिर से मजबूत बनाने में मदद करता है। अंडे के छिलकों को अच्छी तरह धोकर पीस लें और इस पाउडर को अपने टूथपेस्ट में मिलाकर हफ्ते में दो-तीन बार ब्रश करें। इससे दांतों की सड़न के खिलाफ जबरदस्त सुरक्षा मिलती है।
लहसुन:
जो एक नैचुरल एंटीबायोटिक है। इसमें मौजूद एलिसिन नाम का तत्व बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करता है। एक लहसुन की कली को कुचलकर उसमें थोड़ा सा नमक मिलाइए और प्रभावित दांत पर लगाइए। या फिर रोजाना कच्चा लहसुन चबाना भी बहुत फायदेमंद है।
नमक वाले पानी से कुल्ला:
एक बहुत ही आसान और असरदार उपाय है। नमक बैक्टीरिया को मारता है और मुंह के एसिड लेवल को बैलेंस करता है, जिससे कैविटी का खतरा कम होता है। बस गुनगुने पानी में आधा चम्मच नमक मिलाइए और दिन में दो बार कुल्ला कीजिए।
हल्दी:
जो हर रसोई में होती है और एक सुपरहीरो की तरह काम करती है। इसका सूजन और बैक्टीरिया से लड़ने वाला गुण आपके मसूड़ों और दांतों को मजबूत बनाता है। हल्दी पाउडर में थोड़ा पानी मिलाकर पेस्ट बनाएं, दांतों पर लगाएं और फिर कुल्ला करें।
अमरूद के पत्ते:
जिन्हें चबाना या उनके पानी से कुल्ला करना बहुत फायदेमंद होता है। ये आपके मसूड़ों की सूजन को कम करते हैं और कैविटी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म करते हैं। यह एक बेहतरीन और प्राकृतिक उपाय है जो आप अपनी डेली रूटीन में शामिल कर सकते हैं।
शुगर-फ्री गम:
खासकर ज़ाइलिटोल वाली गम, जो लार के उत्पादन को बढ़ाकर मुंह को साफ रखने में मदद करती है। लार आपके दांतों को एसिड अटैक से बचाती है और खाने के कणों को साफ करती है। खाना खाने के बाद शुगर-फ्री गम चबाना आपकी दांतों की सड़न को रोकने में मदद करेगा।
अगर आप भी कैविटी का घरेलू इलाज खोज रहे हैं, तो ये सारे उपाय ना सिर्फ असरदार हैं, बल्कि आपकी जेब पर भी भारी नहीं पड़ेंगे। इन्हें आज़माइए और फिर देखिए कैसे आपकी मुस्कान फिर से निखर उठती है।
तो अब जब भी मुस्कुराएं, तो न सिर्फ दिल से मुस्कुराएं, बल्कि दांतों से भी पूरी तरह से बेफिक्र होकर मुस्कुराएं। क्योंकि अब आपको पता है — कैविटी क्या है, क्यों होती है और कैसे बचा जा सकता है।
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