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लिवर रोग (Liver Diseases)

यकृत रोग (Diseases of the Liver)

यकृत द्वितीया के चन्द्रमा के आकार का होता है- इस पुस्तक में यकृत के विषय में पहले ही लिखा जा चुका है कि यकृत शरीर का सर्वप्रधान यन्त्र है। आज कल यकृत के रोगियों क संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गयी है तथा यकृत में विभिन्न प्रकार के रोग भी होने लग गये हैं। पुरातन काल के लोग आज के लोगों से परिश्रमी एवं पराक्रमी होते थे। आज के युग में व्यसन एवं व्यवसाय का साम्राज्य है। कमजोर माता-पिता की सन्तान भी दिन पर दिन निर्बल एवं कल्पनाहीन होती जा रही हैं। पहले के युग में मनुष्य को शुद्ध भोजन, शुद्ध जल एवं शुद्ध वायु मिलती थी जिसके फलस्वरूप लोग स्वस्थ एवं विस्तृत मस्तिष्क वाले होते थे। आज भी ऐसा देखने में आता है कि देहात में रहनेवाले ग्रामवासियों की अपेक्षा शहरी लोगों में यह रोग विशेष रूप से देखने में आता है।

कलियुग में अन्नमय प्राण है, अर्थात् आज के युग में शरीर के लिए अन्न जल ही स्तम्भ स्त्ररूप है। लेकिन अन्न जल अर्थात् भोजन मिलने पर भी अगर उसका ठीक रीति से सेवन नहीं हो तो भोजन करना एक प्रकार का शारीरिक बोझ ही साबित होता है। भोज्य पदार्थ की तीसरी पाचनावस्था में यकृत द्वारा पित्त आकर भोजन का शुद्ध पाक कर देता है। ऐसा होने से भोजन का सारा भाग रस बनकर पश्चात् रक्तादि धातुओं से होते हुए शुक्र बन जाता है और भोजन की सिट्ठी मल, मूत्र, पसीना, कान की खॉट और आँख का कीचड़ आदि के रूप में बाहर निकल जाती है, हाँ उक्त पित्त अगर भोजन से नहीं मिलकर रक्त से मिल जाय तो महा अनर्थ हो जा सकता है। यकृत, भोज्य पदार्थ एवं रक्त का माध्यम यन्त्र है।

शर्करायुक्त भोजन आँत से पचकर यकृत में पहुंच, एक प्रकार का रस स्वरूप हो जाता है जिसको अंग्रेजी भाषा में ग्लाइकोजन कहते हैं। यकृत छिद्रों में रहकर उक्त रस पुनः शर्करा के रूप में परिवर्तित होकर यकृत शिरा के सहारे रक्त में मिल जाता है। एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली के मतानुसार पाँच सौ छंटाक रक्त में लगभग आधी छंटाक शर्करा पायो जाती है। यही कारण है कि यकृत की क्रिया

यकृत रोग

यकृत में विकृति आने पर पेशाब में चीनी आना तथा विभिन्न प्रकार के रक्तज रोग देखने में आते हैं ।

परीक्षण द्वारा वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि चर्बी तैयार करने में भी सर्वप्रधान कार्य यकृत का ही है । उन लोगों का कहना है कि आहार में निसस्ता (जिनको अंग्रेजी में स्टार्च कहते हैं) रहता है जिसके द्वारा शर्करा और चर्बी तैयार होती है ।

एलोपैथी मतानुकूल यकृत की स्थान च्युति, यकृत-शोथ, यकृत उपदंश, यकृत का सौत्रिकतन्तुमय परिवर्तन, यकृत का तोत्र प्रदाह तथा यकृत का फोड़ा आदि प्रायः २० रोगों का वर्णन मिलता है । यूनानी चिकित्सा शास्त्र मतानुकूल भी यकृत की निर्बलता, कलेजे में सूजन, कलेजे में धड़कन, कलेजे का सिकुड़न तथा पीलिया आदि प्रायः १७ प्रकार के यकृत रोगों का वर्णन मिलता है ।

आयुर्वेद-शास्त्र में यक्कृत से उत्पन्न होने वाले रोगों की मुख्य संख्या प्रायः निम्नलिखित १३ प्रकार की बतलायी गयी हैं:-

ज्वर, जलन, पाण्डु, रक्त बमन, मधुमेह, सरदर्द, शरीर की श्यामवर्णता, राजयक्ष्मा, यकृतोदर, यकृति विद्रधि, श्वास, हिचकी और आँखों में लाली छा जाना ।

आयुर्वेद मतानुसार यकृत रोग की कुछ चुनी हुई औषधियाँ:- जवाखार को ऊंटनी के दूध के साथ सेवन कराने से लाभ होता है ।

यकृत-प्लीहारि (hepatic-splenic)

  • लौह- शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, लौह भस्म और अभ्रक-भस्म 1-1 तोला ताम्र भस्म 2 तोले, शुद्ध जमालगोटा शुद्ध मनःशिला, सुहागे का लावा, गुद्ध शिलाजीत और हल्दी का चूर्ण आठ-आठ आने भर लेवें । पारद गन्धक की कज्जली बनाकर उक्त औषधियों को मिला लेने के पश्चात
  • निम्नलिखित औषधियों से 1- भावना देकर दो रत्ती प्रमाण गोलियाँ तैयार कर लेवें।
  • भावना औषधि : दन्ती मूल, निसोथ, चत्ता, सम्भालू, त्रिकूटा, अदरक और भौगरा । अनुपान गोमूत्र अथवा तक्र के साथ।

यह यकृत रोग की महौषधि है। इसके सेवन से मन्दज्वर, आमजन्य विकृति तथा मन्दाग्नि आदि रोगों का नाश हो जाता है ।

लिवर, जिसे यकृत भी कहा जाता है, शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है जो कई महत्वपूर्ण कार्यों को करता है, जैसे कि विषाक्त पदार्थों को साफ करना, पित्त का उत्पादन करना और पोषक तत्वों को संसाधित करना। जब लिवर ठीक से काम नहीं करता है, तो उसे लिवर रोग कहा जाता है।

लिवर रोग के प्रकार

  • लिवर रोग कई कारणों से हो सकते हैं और विभिन्न रूपों में हो सकते हैं। कुछ सामान्य प्रकारों में शामिल हैं:
  • हेपेटाइटिस: यह लिवर की सूजन है, जो आमतौर पर वायरस के कारण होती है। हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई सबसे आम प्रकार हैं।
  • सिरोसिस: यह लिवर की पुरानी बीमारी है, जिसमें लिवर के ऊतके क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और जगह सकार हो जाती है। यह अक्सर अत्यधिक शराब सेवन, हेपेटाइटिस या अन्य लिवर रोगों के कारण होता है।
  • फैटी लिवर रोग: यह स्थिति तब होती है जब लिवर में अतिरिक्त वसा जमा हो जाती है। यह अक्सर मोटापे, मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल के कारण होता है।
  • लिवर कैंसर: यह लिवर में कैंसर कोशिकाओं का विकास है। यह अक्सर सिरोसिस या हेपेटाइटिस के कारण होता है।

लिवर रोग के लक्षण

लिवर रोग के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:

  • थकान
  • कमजोरी
  • भूख न लगना
  • वजन कम होना
  • मतली और उल्टी
  • पेट में दर्द
  • पीलिया (त्वचा और आंखों का पीला पड़ना)
  • आसानी से चोट लगना या रक्तस्राव होना
  • मन में उलझन या भ्रम
  • लिवर रोग के जोखिम कारक
  • कुछ कारकों से लिवर रोग का खतरा बढ़ सकता है, जिनमें शामिल हैं:
  • अत्यधिक शराब का सेवन
  • हेपेटाइटिस वायरस का संक्रमण
  • मोटापा
  • मधुमेह
  • उच्च कोलेस्ट्रॉल

कुछ दवाओं का उपयोग

लिवर रोग का निदान और उपचार

लिवर रोग का निदान रक्त परीक्षण, इमेजिंग परीक्षण (जैसे अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन) और लिवर बायोप्सी जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जा सकता है। उपचार लिवर रोग के प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है और इसमें जीवनशैली में बदलाव, दवाएं या सर्जरी शामिल हो सकती है।

यदि आपको लिवर रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, तो तुरंत अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

नोट: यह जानकारी केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और चिकित्सकीय सलाह नहीं है। लिवर रोग के बारे में अधिक जानकारी के लिए, कृपया अपने डॉक्टर या अन्य योग्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श करें।

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